बुधवार, 19 मई 2021

चतुर्थ स्कंध 24अध्याय रुद्रगीत

पृथु की वंश परंपरा और प्रचेता ओं को भगवान रुद्र का उपदेश 

 श्री महादेव जी बोले 

जो व्यक्ति अव्यक्त प्रकृति तथा जीव संज्ञक पुरुष _ इन दोनों के नियामक भगवान वासुदेव की साक्षात शरण लेता है वह मुझे परम प्रिय है।

रुद्र गीत_रूद्र गीत एक बड़ा ही पवित्र मंगलमय और कल्याणकारी स्त्रोत्र है इसका शुद्ध भाव से जप करना चाहिए। रुद्रगीत __

रुद्रगीत।

भगवान रुद्र ने कहा कि जो विशुद्ध भाव से स्वधर्म का आचरण करते हुए भगवान में चित लगाकर ,इस स्तोत्र का जप करेगा भगवान उसका मंगल करेंगे। अपने अंतःकरण में स्थित सर्वभूत अन्तर्यामी परमात्मा श्री हरि का ही बार बार  स्तवन और चिंतन करते हुए पूजन करना चाहिए। महादेव ने कहा की यह योग आदेश नाम का स्तोत्र है इसे मन से धारण करो ,मुनि व्रत का आचरण करते हुए इसका एकाग्रता से आदर पूर्वक अभ्यास करना चाहिए ।यह स्तोत्र पूर्व काल में  जगत विस्तार के इच्छुक प्रजापतियों के पति भगवान ब्रह्मा जी ने प्रजा उत्पन्न करने की इच्छा वाले हम भृगु आदिपुत्रों को सुनाया था। जब हम प्रजा पतियों को प्रजा का विस्तार करने की आज्ञा हुई तब इसी के द्वारा हमने अपना अज्ञान निवृत्त करके अनेक प्रकार की प्रजा उत्पन्न की थी। जो भगवत परायण पुरुष इसका एकाग्र चित् से नित्य प्रति जप करेगा उसका शीघ्र ही कल्याण हो जाएगा। इस लोक में सब प्रकार के कल्याण साधनों में मोक्ष दायक ज्ञान ही सबसे श्रेष्ठ है, ज्ञान नौका पर चढ़ाहुआ पुरुष अनायास ही इस दुस्तर संसार सागर को पार कर लेता है। यद्यपि भगवान की आराधना बहुत कठिन है किंतु महादेव के कहे हुए इस स्तोत्र का जो श्रद्धा पूर्वक पाठ करेगा वह सुगमता से ही उनकी प्रसन्नता प्राप्त कर लेगा ,भगवान ही संपूर्ण कल्याण साधनों के एकमात्र प्यारे प्राप्तव्य  हैं ,अतः इस स्तोत्र के गान से उन्हें प्रसन्न करके वह  स्थिर चित्त होकर उनसे जो कुछ चाहेगा वह प्राप्त कर लेगा जो पुरुष उष:काल में उठकर इसे श्रद्धा पूर्वक हाथ जोड़कर सुनता है सुनाता है ,वह सब प्रकार के कर्म बंधनों से मुक्त हो जाता है ।राजकुमारों मैंने तुम्हें जो यह परम पुरुष परमात्मा का स्तोत्र सुनाया है इसे एकाग्र चित्त से जपते हुए तुम महान तपस्या करो ,तपस्या पूर्ण होने पर इसी से तुम्हें अभीष्ट फल प्राप्त होजायेगा ।

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